श्री उद्धव घमंड देव आचार्य जी महाराज
प्रसिद्ध आचार्य रसि्क राज राजेश्वर श्री हरिव्यास देव आचार्य जी के द्वादश शिष्यो में से एक हैं। श्री ध्रुव दास जी महाराज ने 'बयालीस लीला ग्रन्थ' में इनका परिचय व प्रशंसा करते हुए कहा है कि श्री घमंड देव आचार्य श्री युगलवर्य कि लीलाओं का गान करते हुए अधिकान्श व्रन्दावन में बन्शीवट पर निवास करते थे।
घमंडी रस में घुमडि रह्यो, व्रन्दावन् निज धाम।
बंसीवट तट वास किये, गायो श्यामाश्याम।।
श्री उद्धव घमंड देव आचार्य जी का जन्म जयपुर राज्य के दुराबदु नामक ग्राम में ब्राह्मण वंश में हुआ था।
इनका बचपन का नाम उद्धव था | बाबा जी को श्री हरिव्यास देव आचार्य जी महाराज के द्वारा घमण्ड देव की उपाधि प्रदान हुई |
श्री उद्धव घमण्ड देव जी महाराज ने करहला (कहर्वन )में श्री राधा-कृष्ण की आराधना की |
श्री उद्धव घमंड देव जी महाराज को स्वयं श्री श्याम (ठाकुर जी महाराज ) ने प्रसन्न होकर दर्शन दिये और साथ ही स्वर्ण मुकुट चन्द्रिका प्रदान कर आज्ञा की कि जगत में मेरी लीलाओं को प्रकाशित कर प्राणियों को मेरी ओर अग्रसर करें |
श्री उद्धव घमंड देवाचार्य जी महाराज ने वि. सं १४०८ में महा-रास मंडल की स्थापना कर महारास-लीला का शुभारंभ किया | तभी से बरसना निकटवर्ती अष्ट-सखियों के गावों में रासमंडल की सथापना हुई | इस प्रकार सर्वत्र भारत में तथा विदेशों में श्री राधा-कृष्ण की रास लीलाओं का प्रचार-प्रसार होता चला आ रहा है |
ब्रज भूमि में श्री श्यामा श्याम की लीलाओ का प्रदर्शन श्री उद्धव बाबा जी ने अपने शिष्यों के साथ मिलकर शुरू किया था|
ब्रज-मंडल में जो भी रास-मंडली बनती है, वह प्रथम करहला रास-मंडल पर लीला करती है और मंडल की परिक्रमा करती है उसके उपरांत ही वह मंडली अन्यत्र लीला करने जाती है| यह प्रथा आज भी प्रचलित है |
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