Friday, December 14, 2018

Birth Story of Shri Udhav Ghamad Dev Aacharya Ji Maharaj

श्री घमंड देवाचार्य जी की जन्म कथा

Sri Udhav Ghamand Dev Ji Maharaj

बाबा जी के जन्म के बारे में एक जनश्रुति प्रचलित है.....
कहते हैं श्री हरिव्यास देवाचार्य के एक शिष्य श्री वोहितदेव जी के सगाई संबंध होते ही ग्रह त्याग कर भाग आये और श्री हरि व्यास देव जी से दीक्षा ग्रहण कर उनके साथ श्री राधा कृष्ण भक्ति का प्रचार करते हुए यत्र तत्र भ्रमण करने लगे।
इधर उस वाग्दत्ता नामक कन्या ने भी प्रतिज्ञा कर ली कि मेरे माता पिता ने जिसके साथ मेरी सगाई निश्चय की है उन्ही के साथ विवाह करूँगी, अन्यथा आजीवन ब्रह्मचारिणी रहूंगी।
देवयोग से श्री हरिव्यास देव जी अपनी संत मंडली के साथ दुबरदु पहुंचे। संतो के दर्शनार्थ सभी ग्रामवासी आये।
उनमे श्री वोहितदेव जी के माता पिता भी थे। उन्होंने अपने पुत्र को पहचान लिया। समझा भुझा कर घर ले गए | वह वाग्दत्ता कन्या पहले ही बुला ली गयी थी। उसने श्री वोहितदेव जी को प्रणाम किया। माता पिता ने उसका परिचय कराया।
उसके व्रत की चर्चा की। यह वार्ता सुन श्री वोहितदेव जी ने बड़े उदार चित होकर कहा- कहो तुम्हारी क्या कामना है?
उसने प्रार्थना पूर्वक पुत्र की लालसा प्रकट की।
श्री वोहितदेव जी तथास्तु कह कर जब चलने लगे तब उस कन्या ने विनय की - इस प्रकार पुत्रोप्ति से तो मुझे कलंकित होना पड़ेगा।
तब उन्होंने कहा- यह पुत्र रत्न तुम्हारे उदर से न होकर दाहिनी हथेली से उत्पन्न होगा। वह बालक दिव्य गुणों से अलंकृत एवं श्री राधा कृष्ण के मधुर रास रस का प्रकाशक- प्रचारक होगा। इस प्रकार वर देकर आप संत मंडली में चले गए।
कुछ ही दिनों के उपरांत उस कन्या की हथेली में एक फलक उठा और उसमें से दिव्य प्रवाह युक्त बालक का प्रादुर्भाव हो गया।
बालक का नाम उद्धव रखा गया। बालक की स्नेहमयी माँ श्री हरि चरणों में अपना मन लगा कर तथा बालक की भगवत भक्ति में प्रगाढ़ निष्ठा देख उसके त्यागमय वचनों को सुनकर अति आनंदित होती।
परम भागवत बालक उद्धव बाल्यावस्था को व्यतीत कर चुके, उस समय महवानीकर श्री मदहरिव्यासदेवाचार्य जी संत समाज के साथ पुनः दुबरदु पधारे।
आचार्यश्री का आगमन सुनकर संत-चरणकमल मधुप उद्धव तुरंत वहां पहुंचे। संत दर्शन कर परमानंदित हो गए। श्री वोहितदेव देव जी ने इनको पहचान कर प्रेम पूर्वक श्री गुरुदेव से वैष्णवी दीक्षा संस्कार कराया। साथ ही श्रीआचार्य प्रबल ने विरक्त वेश से भूषित किया भगवन्नाम सुधा के मद में मत्त देखकर उन्हें *घमंड* नाम प्रदान किया।
श्री गुरुदेव जी ने श्री उद्धव घमंड देव जी को कुछ दिन जन्म स्थान में रह कर ब्रज में आने का आदेश प्रदान किया ओर वे वहां से अन्यत्र चले गए।
श्री गुरु आज्ञा से श्री उद्धव घमंड देव जी घर पर रह तो गए किन्तु इनके मन में तो ब्रज दर्शन की उत्कट लालसा लगी थी।
यह दरशनाभिलाशा इतनी तीव्रतर हो गयी की ये अपने को रोक नही सके और एक दिन रात्रि काल में ब्रज की ओर चल पड़े।
योगवश ब्रज की सीमास्थित 'लीकई' (वर्तमान नाम लीखी) गांव में पहुच गए। अष्ट सात्विक भाव युक्त मंगलवपू से ब्रज भूमि को साष्टांग प्रणाम कर वही विराज गए।
सरस अंत:करण में सहज ही श्री राधा कृष्ण की सुमधुर लीलाओं की स्फूर्ति होने लगी।
श्री युगलवर्य की प्रेरणा से कुछ दिन वहीं विराजकर एक विशाल स्तम्भ तथा वहीं एक सुंदर मंदिर का निर्माण कराया।
आज भी वहां आपकी परम पावन चरण-पादुका समाधि पर प्रतिष्ठित हैं जिन्हें हिन्दू-मुसलमान समान भाव से सश्रद्धा पूजते हैं।
सौजन्य से: श्री घमंडदेवाचार्य रासमण्डल सेवा ट्र्स्ट करहला(मथुरा)



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